IIT Success Story 2025: हर साल लाखों छात्र-छात्राएं उच्च शिक्षा की परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। कुछ को कोचिंग संस्थानों का सहारा मिलता है, तो कुछ अपने दम पर आगे बढ़ते हैं। लेकिन ऐसे बहुत कम उदाहरण होते हैं जहाँ कोई छात्रा, बिना किसी कोचिंग, बिना किसी गाइडेंस के, अपने जुनून, मेहनत और आत्मविश्वास के बल पर IIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में PhD में ऑल इंडिया रैंक 1 (AIR-1) हासिल कर ले।
दमिनी सिंह का नाम अब ऐसे ही प्रेरणादायक उदाहरणों में गिना जाता है। हिमाचल प्रदेश के शिमला की संजौली बस्ती से निकलकर उन्होंने देश के सबसे बड़े संस्थानों में न सिर्फ दाखिला लिया बल्कि सफलता की नई परिभाषा भी गढ़ दी।
IIT Success Story 2025
दमिनी सिंह ब्रार का जन्म हिमाचल प्रदेश के शिमला शहर के संजौली इलाके में हुआ। पहाड़ों की गोद में पली-बढ़ी दमिनी ने बहुत ही साधारण परिवार में अपनी जिंदगी शुरू की थी। उनके पिता राजनीश ब्रार, शिमला नगर निगम में स्वच्छता निरीक्षक (Sanitation Inspector) के पद पर कार्यरत हैं और उनकी माता मीरा ब्रार एक घरेलू महिला हैं।
इस सामान्य आर्थिक स्थिति के बावजूद दमिनी का सपना बड़ा था। शुरू से ही उनकी रुचि पढ़ाई में रही। उनका मनोविज्ञान (Psychology) की ओर झुकाव तब से था जब वे स्कूली शिक्षा में थीं। यही जुनून उन्हें दिल्ली के प्रतिष्ठित कॉलेजों तक ले गया।
स्कूल से लेकर टॉप यूनिवर्सिटीज़ तक का सफर
दमिनी की शिक्षा की शुरुआत शिमला के एक स्थानीय स्कूल से हुई थी, जहाँ उन्होंने 12वीं बोर्ड परीक्षा में पूरे जिले में टॉप किया। यह उनकी पहली बड़ी जीत थी जिसने उन्हें यह भरोसा दिया कि वे बड़े संस्थानों में भी सफलता हासिल कर सकती हैं।
इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज (LSR) में अंग्रेजी ऑनर्स (English Honours) में दाखिला लिया। यह कॉलेज देशभर में अपनी शैक्षणिक गुणवत्ता और लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए जाना जाता है।
बिना कोचिंग कैसे पाई सफलता?
सबसे खास बात यह है कि दमिनी ने किसी भी परीक्षा के लिए कोचिंग नहीं ली। न UGC-NET के लिए, न ही IIT की PhD प्रवेश परीक्षा के लिए। उन्होंने बताया कि वे हर दिन 2 से 4 घंटे पढ़ाई करती थीं। समय भले ही कम हो, लेकिन फोकस और कंसिस्टेंसी उनके सबसे बड़े हथियार थे।
उन्होंने ऑनलाइन रिसोर्सेज, पिछले साल के पेपर, और खुद की बनाई गई नोट्स से तैयारी की। वे हर विषय को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटकर पढ़ती थीं, ताकि उसे समझना आसान हो जाए। हर हफ्ते रिवीजन करना उनकी आदत बन गई थी।
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